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कद्धिष्ण्या॑सु वृधसा॒नो अ॑ग्ने॒ कद्वाता॑य॒ प्रत॑वसे शुभं॒ये। परि॑ज्मने॒ नास॑त्याय॒ क्षे ब्रवः॒ कद॑ग्ने रु॒द्राय॑ नृ॒घ्ने ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kad dhiṣṇyāsu vṛdhasāno agne kad vātāya pratavase śubhaṁye | parijmane nāsatyāya kṣe bravaḥ kad agne rudrāya nṛghne ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कत्। धिष्ण्या॑सु। वृ॒ध॒सा॒नः। अ॒ग्ने॒। कत्। वाता॑य। प्रऽत॑वसे। शु॒भ॒म्ऽये। परि॑ऽज्मने। नास॑त्याय। क्षे। ब्रवः॑। कत्। अ॒ग्ने॒। रु॒द्राय॑। नृ॒ऽघ्ने॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:3» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशमान आप ! (धिष्ण्यासु) बुद्धि में उत्पन्न क्रियाओं में (वृधसानः) बढ़नेवालों का विभाग करते हुए (प्रतवसे) श्रेष्ठ बल और (वाताय) विज्ञान के लिये (कत्) कब (ब्रवः) कहो (अग्ने) हे विद्वन् राजन् ! (परिज्मने) सब ओर भूमि जिसके उस (शुभंये) कल्याण को प्राप्त होनेवाले (नासत्याय) असत्य आचरण से रहित के लिये (कत्) कब कहो (क्षे) पृथिवी राज्य के लिये विद्यमान जिसमें उसमें (नृघ्ने) शत्रुओं के नायकों के नाश करने और (रुद्राय) दुष्ट पुरुषों को रुलानेवाले के लिये (कत्) कब कहो ॥६॥
भावार्थभाषाः - राजा आदि अध्यक्षों के प्रति अध्यापक, उपदेशक और मन्त्रीजन ऐसा उपदेश देवें कि आप लोग बुद्धि के कामों में वृद्ध, बलिष्ठ, उत्तम आचरणवाले, सत्यवादी और दुष्ट पुरुषों के नाश करनेवाले कब होओगे और उत्तम आचरण करने और दुष्ट आचरण के त्याग में विलम्ब न करो ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं धिष्ण्यासु वृधसानः सन् प्रतवसे वाताय कद् ब्रवः। हे अग्ने ! परिज्मने शुभंये नासत्याय कद् ब्रवः क्षे नृघ्ने रुद्राय कद् ब्रवः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कत्) कदा (धिष्ण्यासु) धिष्णायां बुद्धौ भवासु क्रियासु (वृधसानः) यो वृधान् वर्धकान् विभजति (अग्ने) विद्वन् राजन् (कत्) कदा (वाताय) विज्ञानाय (प्रतवसे) प्रकृष्टबलाय (शुभंये) यः शुभं याति प्राप्नोति तस्मै (परिज्मने) परितः सर्वतो ज्मा भूमिर्यस्य तस्मै (नासत्याय) अविद्यमानासत्याचाराय (क्षे) भूमी राज्याय विद्यते यस्मिंस्तस्मिन्। अत्रार्श आदिभ्योऽच् (ब्रवः) ब्रूयाः (कत्) (अग्ने) पावकवद्देदीप्यमान (रुद्राय) दुष्टानां रोदयित्रे (नृघ्ने) यः शत्रूणां नायकान् हन्ति तस्मै ॥६॥
भावार्थभाषाः - राजादीनध्यक्षान् प्रत्यध्यापकोपदेशकमन्त्रिणः एवमुपदिशेयुर्भवन्तो प्रज्ञाकर्म्मसु वृद्धा बलिष्ठाश्शुभाचरणाः सत्यभाषिणो दुष्टान् घातुकाः कदा भविष्यन्ति शुभाचरणे दुष्टाचारत्यागे विलम्बं मा कुर्वन्तु ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक, उपदेशक व मंत्री लोकांनी राजाला असा उपदेश करावा की, तू बुद्धीच्या कामात वृद्ध, (अनुभवी) बलवान, उत्तम आचरण करणारा, सत्यवचनी व दुष्ट पुरुषांचा नाश करणारा कधी बनशील? उत्तम आचरण करण्यास व दुष्ट आचरणाचा ताबडतोब त्याग करण्यास विसरू नकोस ॥ ६ ॥